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Thursday, April 7, 2016

खड़ूस बॉस

खड़ूस बॉस

लंच टाइम में गप-शप चल रही थीं -
" यार ! अपने सीईओ भी एक नंबर के खड़ूस हैं। करोड़ों का पैकेज है, लेकिन रहन-सहन क्लर्क जैसा।"
" जाने क्यों, ऊपर वाले को भी इन्हें ही छप्पर फाड़ कर देना था। "
" जब देखो शो कॉज नोटिस, सख्ती, डाँटना...देख लेना, कंजूस की दौलत को उसके नालायक बच्चे एक दिन बेरहमी से उडाएंगे।"
बड़े बाबू ने सबको खिड़की से दिखाई देते बंदर की ओर इशारा करते हुए कहा -
" देखो, बंदर नारियल को कितने जतन से संभाले है। इस से वो किसी का सिर तो फोड़ सकता है, परन्तु इस के भीतर का स्वाद नहीं चख सकता।"
" क्या मतलब बड़े बाबू ! "
" अपने सीईओ का भी यही हाल है। वे अपनी सम्पत्ति पर जतन से कुंडली मारे बैठे हैं, न अच्छा खाते-पहनते हैं और न कभी पार्टी-जश्न। ठीक इस बंदर की तरह ...हे ..हे ..हे।"
एक सामूहिक ठहाका वातावरण में गूंज गया। लेकिन अगले पल जैसे सब को सांप सूंघ गया। दरवाजे पर सीईओ साहब कब से खड़े सबकी बात सुन रहे थे। वे भावहीन से अपनी केबिन की ओर चल दिए, पीछे से बड़े बाबू ने दबी जवान में कहा-
" राम जाने, नारियल किस के सिर पर गिरेगा।"
बॉस ने पलट कर जवाब दिया
" किसी के नहीं। हाँ, आज न चाहते हुए भी एक बात बताता हूँ। मेरे पिता को कैंसर था। मैंने उन्हें तिल-तिल मरते देखा है। बेशुमार दौलत उनकी साँसे लम्बी न कर सकी थी। उन पर दर्दनाक मौत की छाया ने हमारे सारे परिवार को हिला कर रख दिया था। उन्हें एक साल तक दर्द से रोते-तड़पते देखा है, भगवान से मौत देने के लिए गिड़गिड़ाते देखा है। बस, उनके गुजरने के बाद मैंने विरासत में मिली सारी जायदाद कैंसर शोध संस्थान को दान कर दी थी और हर माह अपने वेतन में से गुजारे लायक रख कर, शेष कैंसर अस्पताल में जरूरतमंद रोगियों की सेवा में अर्पित कर देता हूँ।"
बॉस अपनी केबिन में जा चुके थे, बड़े बाबू की आँखों में आंसू थे।


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