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Friday, February 10, 2012

जब 'बिग-बी' को नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं...!




शरद ठाकर।अच्छा ही हुआ कि सरकारी अधिकारियों की वजह से अमितजी को आकाशवाणी में नौकरी नहीं मिली। नहीं तो हमें आज देश भर में प्रसारित हो रहे सीरियल 'कौन बनेगा करोड़पति' में बिग बी की यह आवाज नहीं सुनने मिलती...नमस्कार देवीयों और सज्जनों, मैं अमिताभ बच्चन 'कौन बनेगा करोड़पति' में आपका स्वागत करता हूं...!

आखिरकार एक दिन कवि बच्चन ने अमिताभ से कहा, 'मुझे लगता है तुम्हें कोलकाता जाना चाहिए। वहां मेरा एक दोस्त रहता है, जिसका नाम मिस्टर गजानंद है। साथ ही कवि का कहना था कि कोलकाता शहर किसी को निराश नहीं करता।'

अमितजी कोलकाता में गजानंद अंकल के घर पहुंच गए। नौकरी के लिए उन्होंने यहां एक-एक दिन में 15-15 तक आवेदन किए। इसके अलावा अमिताभ खाली समय में फुटबाल मैच देखने से भी नहीं चूकते थे। अगर टिकट खरीदने के पैसे नहीं होते थे तो वे दीवार पर चढ़कर मैच देखा करते थे। मोहन बागान उनकी प्रिय टीम थी। अपने पसंदीदा खिलाडिय़ों को देखने के लिए अमितजी किराए की दूरबीन भी ले आया करते थे।

आज भी उनका फुटबाल के प्रति लगावा बिल्कुल कम नहीं हुआ है। हम जितनी एकाग्रता के साथ अमिताभ की फिल्में देखा करते हैं उससे कहीं ज्यादा रुचि से वे फुटबाल का मैच देखा करते हैं। दुनिया में कहीं भी दो अच्छी टीमों के बीच फुटबाल का खेल हो रहा हो, अमितजी लाइव नहीं देख पाएं तो तो उसकी सीडी या डीवीडी तक मंगा लेते हैं। आज कोलकाता छूट गया, खिलाड़ी बदल गए, फिर भी अमितजी मोहन बागान के जबर्दस्त फैन हैं।

एक दिन 'बर्ड एंड हिल्जर्स' नामक कंपनी की ओर से उन्हें इंटरव्यू के लिए बुलावा आया। इंटरव्यू में अमिताभ पास हो गए। कुछ दिनों में ही उन्हें नियुक्ति पत्र मिल गया। पोस्टमैन जब यह पत्र लेकर आया तो गजानंद अंकल घर में उपस्थित नहीं थे। पोस्टमैन ने नियुक्ति पत्र सीधा अमितजी के हाथों में थमा दिया। अमिताभ की खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने तुरंत ही दिल्ली फोन कर पिताजी को यह शुभ समाचार सुनाया। अंत में पूछा! बाबूजी, मैं क्या करूं, यह नौकरी ले लूं? बाबूजी ने जवाब दिया... बेटा, यह तुम्हारे जीवन की पहली नौकरी है, इसे स्वीकार कर लो और जीवन में एक बात हमेशा याद रखना कि यह नौकरी तुम्हें तुम्हारी योग्यता के कारण मिली है, किसी की सिफारिश से नहीं।

यह 1993 जुलाई का महीना था। कोलसा विभाग में काम करना था। नियत तनख्वाह 500 रुपए मासिक थी। इसमें से कटौती के बाद अमित के हाथ में 470 रुपए आया करते थे। ट्रेनिंग के लिए अमितजी को आसनसोल, धनबाद और हजारीबाग की खदानों में जाना था।

इसी तरह की ट्रेनिंग के दौरान एक बार वे एक दुर्घटना के शिकार हो गए। अमितजी कोलसा की खदान में जब टे्रनिंग ले रहे थे, तभी एक चट्टान धसक गई और वे खदान के अंदर फंस गए। दूसरी तरफ पानी भी तेज प्रवाह से खदान में भरने लगा। जिंदगी का अंत बहुत नजदीक दिखाई दे रहा था, तभी एक बचाव दल ने उन्हें बचा लिया। इसी घटना को वर्षांे बाद फिल्म 'कालिया' के एक दृश्य में भी फिल्माया गया।

जिस दिन अमित के हाथों में पहली तनख्वाह आई, उनकी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। उन्होंने अपनी इस पहली तनख्वाह में से बाबूजी के लिए पेन, मां के लिए साड़ी और छोटे भाई बंटी (अजिताभ) के लिए शर्ट खरीदी थी। परिजनों के अलावा अमिताभ गजानंद अंकल के लिए भी गिफ्ट लेना नहीं भूले थे।

अमिताभ ने जब अपनी पहली तनख्वाह से परिवार के लिए उपहार खरीदे, यह उनकी जिंदगी की पहली और आखिरी घटना थी। 470 की रकम उस जमाने में काफी हुआ करती थी। अमितजी कोलकाता में पांच वर्ष रहे और कुल दो जगह ही नौकरी की। उनकी आखिरी तनख्वाह 1640 रुपए थी। इतनी तनख्वाह में एक परिवार सुख-चैन की जिंदगी गुजार सकता था। लेकिन अमितजी के हाथ खर्चीले हो गए थे। वह अपनी पूरी तनख्वाह मौज-मस्ती में ही उड़ा दिया करते। महंगे कपड़े, ब्रांडेड घडिय़ां, टाई, जूते के अलावा अलग-अलग तरह की कफलिंग्स का भी उन्हें काफी शौक था। अब जिस व्यक्ति के ऐसे शौक हों तो वह परिवार के लिए पैसे बचा भी कैसे सकता है?

इसके उलट हर दो-चार महीने में बाबूजी को दिल्ली से बेटे के लिए मनीऑर्डर करना पड़ता था। अब प्रश्न यह उठता है कि अतिम आखिर इतने सारे पैसे कहां उड़ा दिया करते थे? इसका रहस्य बहुत रोमांचक है...जिसकी कहानी आगामी अंक में बताएंगे।

कोलकाता में अमिताभ ने कुल 5 वर्ष का समय बिताया। 1963 से 1968 के बीच उन्होंने मात्र दो जगह ही नौकरियां की। लेकिन उनके पैरों में स्थिरता नहीं थी। मकानों की पसंद को लेकर वे हमेशा कन्फ्यूज रहे। इन पांच वर्षों में उन्हें कुल बीस मकान बदले। एक बार दिल्ली आकर वे अपनी ढोलक ले गए। बाबूजी को यह बात बहुत अजीब लगी कि आखिर खदान में काम करने वाले मेरे बेटे को ढोलक की जरूरत क्यों आन पड़ी?

उन्हें क्या पता था कि नौकरी के बाद उनके लाड़ले की मित्रमंडली के साथ शानदार पार्टी हुआ करती थी। प्रतिदिन शाम को सिगरेट के धुंए और व्हिस्की की आग के बीच ढोलक पर थाप मारते हुए भोजपुरी जुबान में उत्तरप्रदेश का एक लोकगीत गाया करते थे। जिस गीत को सुनकर बंगाल की सश्यश्यामला युवतियां उन पर फिदा हो जाया करती थीं और भविष्य में इसी गीत पर पूरा देश झूमने वाला था... अमितजी का यह गीत था... मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है...

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