भाग्य से मिले तीन संतरे भी पुरुषार्थी का जीवन बदल सकते है और निठल्ले उसे खाकर खत्म कर सकते है।
भाग्य और पुरुषार्थ
अवंतिपुर में मनोहर नामक एक व्यक्ति रहता था। वह खाट पर पडा-पडा अपने भाग्य को कोसता रहता। एक बार उसने कहीं सुना कि भाग्य पुरुषार्थियों का साथ देता है जो पास में है, उसी से शुरुआत करनी चाहिए। उसने इसे आजमाने की ठानी और तीन संतरे लेकर जंगल की ओर पैदल निकल पडा।
यह तीन संतरे ही उसके पास थे। घने जंगल में उसका सामना दो-तीन सेवको को साथ में लिए हुए एक युवती से हुआ। वह किसी धनी व्यापारी की पत्नी थी जिसका गला प्यास से सुख रहा था पर पास मे पानी नही था। मनोहर के दिए संतरो के रस से उसकी जान बची। बदले में उसने कपडों के तीन थान मनोहर को दिए।
मनोहर ने उन तीन थानों के बदले एक घोडा खरीद लिया। घोंडो पर बैठ कर वह आगे रवाना हुआ। रास्ते में उसे एक वृद्ध दम्पति मिले जिनसे चला नहीं जा रहा था। मनोहर ने उन्हें अपना घोडा दे दिया। आभारी होते हुए वृद्ध ने इसके बदले मनोहर को अपने खेत का एक टुकडा दिया।
खेत के टुकडे पर मनोहर ने साल भर पसीना बहाया और वहां अच्छी फसल हुई। फसल बेच कर मनोहर ने अपने लिए एक छोटा-सा घर बनाया। मनोहर की सम्पन्नता देख कर एक किसान ने अपनी पुत्री का विवाह मनोहर के साथ कर दिया और मनोहर सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगा।
अब मनोहर जिससे भी मिलता, उससे कहता कि भाग्य से मिले तीन संतरे भी पुरुषार्थी का जीवन बदल सकते है और निठल्ले उसे खाकर खत्म कर सकते है।
No comments:
Post a Comment