twitcker

Random

Social Share



Sunday, February 26, 2012

Just Dance - The Non Stop Remix

Just Dance - The Non Stop Remix

 



 01 O Mere Dil Ke Chain (mere jeevan sathi) electro club mix
02 Mehbooba (sholay) club fire mix
03 Duniyaan haseeno ka mela
04 Gazab Ka Hai Din
05 Deewana Tera Deewana(srk babu miix)
06 Phela Nasha (mega style mix)
07 Tip Tip Barsa ElectroClub
08 Akele Hain
09 Tune Mujhe Pehchana
10 Ole Ole LE Elctro Trible Remix
11 Tera Naam Liya ( ELECTRO CONGO MIX)
12 Jab hum java honge(welcome youngistan mix)
13 Jane Kaise Kab
14 Taare Hai Barati Remix
15 Main Jatt Yamla Remix
16 Apni To Jaise Taise Remix
17 Temperature(Sean paul)
18 Tinku Jiya Remix
19 David Guetta - SexyBitch
20 Ek Pal Ka Jeena Remix
21 Munni Badnam ( Dabbang ) Tribal Mix
22 Laung Da Lashkara - Desi Dutch Remix
23 Collaboration Basanti Mix
24 Sheela Ki Jawani
25 RDB Feat. Lehmber - Sadi Gali (Electrohyme 2009)
26 Humma Humma [Electro Mix]
27 Bahut Pyar Karte Hain ( Electro Mix)
28 Dhoor Remix
29 Hotel Room Service (Wes Field Electro Remix) - Pitbull
30 Rise Up Vandalism Remix
31 Twist (Twisticated Mix)
32 Taare Hai Barati
33 Nachna Onda Nei (Desi Funk Remix)
34 Yamla Pagla Deewana (Electro Madness Mix)
35 Darling
36 Diljit - Lak Twent Eight Kudi Da Ft. Honey Singh
37 Gal Mithi Mithi (Nawed & Zoheb Khan_s Remix)TG

Non Stop Remix Bollywood Songs (A.R. Rahman)

Non Stop Remix Bollywood Songs (A.R. Rahman) 

 

Best Of Aamir Khan (HQ)

Best Of Aamir Khan (HQ)

 

Bollywood Romantic Songs (HQ)

Bollywood Romantic Songs (HQ) 

 

Huge Bollywood Songs Collection - Wedding Songs (HQ)

Huge Bollywood Songs Collection - Wedding Songs (HQ) 

 

Best Of Nadeem-Shravan (HQ)

Best Of Nadeem-Shravan (HQ) 

Non Stop Bollywood Songs Huge Collection 6/6


Non Stop Bollywood Songs Huge Collection - Part 1/6 (HQ) 
  Non Stop Bollywood Songs Huge Collection - Part 2/6 (HQ) Non Stop Bollywood Songs Huge Collection - Part 3/6 Non Stop Bollywood Songs Huge Collection - Part 4/6 (HQ) Non Stop Bollywood Songs Huge Collection - Part 5/6 (HQ) Non Stop Bollywood Songs Huge Collection - Part 6/6 (HQ)

Saturday, February 18, 2012

Om Namah Shivaya



ओम नम: शिवाय - महाशिवरात्रि की व्रत-कथा

महाशिवरात्रि की व्रत-कथा


एक बार पार्वती ने भगवान शिवशंकर से पूछा, ‘ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?’
उत्तर में शिवजी ने पार्वती को ‘शिवरात्रि’ के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- ‘एक गाँव में एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।
शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया।
अपनी दिनचर्या की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढँका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।
पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए।
एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, ‘मैं गर्भिणी हूँ। शीघ्र ही प्रसव करूँगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब तुम मुझे मार लेना।’ शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी झाड़ियों में लुप्त हो गई।
कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘हे पारधी ! मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूँ। कामातुर विरहिणी हूँ। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊँगी।’
शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर न लगाई, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, ‘हे पारधी! मैं इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊँगी। इस समय मुझे मत मार।’
शिकारी हँसा और बोला, ‘सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे।’
उत्तर में मृगी ने फिर कहा, ‘जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ। हे पारधी! मेरा विश्वास कर मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।’
मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के आभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्व करेगा।
शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला,’ हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूँ। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा।’
मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-चक्र घूम गया। उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, ‘मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ।’
उपवास, रात्रि जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गए। भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।
थोड़ी ही देर बाद मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया।
देव लोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहा था। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की। तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।’


महाशिवरात्रि पूजाविधि
शिवपुराणके अनुसार व्रती पुरुषको महाशिवरात्रि के दिन प्रातःकाल उठकर स्न्नान-संध्या आदि कर्मसे निवृत्त होनेपर मस्तकपर भस्मका त्रिपुण्ड्र तिलक और गलेमें रुद्राक्षमाला धारण कर शिवालयमें जाकर शिवलिंगका विधिपूर्वक पूजन एवं शिवको नमस्कार करना चाहिये। तत्पश्चात्‌ उसे श्रद्धापूर्वक महाशिवरात्रि व्रतका इस प्रकार संकल्प करना चाहिये-
शिवरात्रिव्रतं ह्यतत्‌ करिष्येऽहं महाफलम्‌।
निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते॥
महाशिवरात्रि के प्रथम प्रहर में संकल्प करके दूध से स्नान तथा `ओम हीं ईशानाय नम:’ का जाप करें। द्वितीय प्रहर में दधि स्नान करके `ओम हीं अधोराय नम:’ का जाप करें। तृतीय प्रहर में घृत स्नान एवं मंत्र `ओम हीं वामदेवाय नम:’ तथा चतुर्थ प्रहर में मधु स्नान एवं `ओम हीं सद्योजाताय नम:’ मंत्र का जाप करें।

महाशिवरात्रि मंत्र एवं समर्पण

सम्पूर्ण – महाशिवरात्रि पूजा विधि के दौरान ‘ओम नम: शिवाय’ एवं ‘शिवाय नम:’ मंत्र का जाप करना चाहि‌ए। ध्यान, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, पय: स्नान, दधि स्नान, घृत स्नान, गंधोदक स्नान, शर्करा स्नान, पंचामृत स्नान, गंधोदक स्नान, शुद्धोदक स्नान, अभिषेक, वस्त्र, यज्ञोपवीत, उवपसत्र, बिल्व पत्र, नाना परिमल दव्य, धूप दीप नैवेद्य करोद्वर्तन (चंदन का लेप) ऋतुफल, तांबूल-पुंगीफल, दक्षिणा उपर्युक्त उपचार कर ’समर्पयामि’ कहकर पूजा संपन्न करें। कपूर आदि से आरती पूर्ण कर प्रदक्षिणा, पुष्पांजलि, शाष्टांग प्रणाम कर महाशिवरात्रि पूजन कर्म शिवार्पण करें।
महाशिवरात्रि व्रत प्राप्त काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यन्त करना चाहि‌ए। रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करने से जागरण, पूजा और उपवास तीनों पुण्य कर्मों का एक साथ पालन हो जाता है और भगवान शिव की विशेष अनुकम्पा और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।




























Jai Bajrang Bali














SHRI HANUMAN CHALISA

Shri Guru Charan Saroj RajAfter cleansing the mirror of my mind with the pollen
Nij mane mukure sudhardust of holy Guru's Lotus feet. I Profess the pure,
Varnao Raghuvar Vimal Jasuuntainted glory of Shri Raghuvar which bestows the four-
Jo dayaku phal charfold fruits of life.(Dharma, Artha, Kama and Moksha).
Budhi Hin Tanu JanikeFully aware of the deficiency of my intelligence, I
Sumirau Pavan Kumarconcentrate my attention on Pavan Kumar and humbly
Bal budhi Vidya dehu moheask for strength, intelligence and true knowledge to
Harahu Kalesa Vikarrelieve me of all blemishes, causing pain.
Jai Hanuman gyan gun sagarVictory to thee, O'Hanuman! Ocean of Wisdom-All
Jai Kapis tihun lok ujagarhail to you O'Kapisa! (fountain-head of power,wisdom
and Shiva-Shakti) You illuminate all the three worlds
(Entire cosmos) with your glory.
Ram doot atulit bal dhamaYou are the divine messenger of Shri Ram. The
Anjani-putra Pavan sut namarepository of immeasurable strength, though known
only as Son of Pavan (Wind), born of Anjani.
Mahavir Vikram BajrangiWith Limbs as sturdy as Vajra (The mace of God Indra)
Kumati nivar sumati Ke sangiyou are valiant and brave. On you attends good Sense
and Wisdom. You dispel the darkness of evil thoughts.
Kanchan varan viraj subesaYour physique is beautiful golden coloured and your dress
Kanan Kundal Kunchit Kesais pretty. You wear ear rings and have long curly hair.
Hath Vajra Aur Dhuvaje VirajeYou carry in your hand a lightening bolt along with a victory
Kandhe moonj janehu sajai(kesari) flag and wear the sacred thread on your shoulder.
Sankar suvan kesri NandanAs a descendant of Lord Sankar, you are a comfort and pride
Tej pratap maha jag vandanof Shri Kesari. With the lustre of your Vast Sway, you are
propitiated all over the universe.
Vidyavan guni ati chaturYou are the repository of learning, virtuous and fully accom-
Ram kaj karibe ko aaturplished, always keen to carry out the behest's of Shri Ram.
Prabu charitra sunibe ko rasiyaYou are an ardent listener, always so keen to listen to the
Ram Lakhan Sita man Basiyanarration of Shri Ram's Life Stories. Your heart is filled with
what Shri Ram stood for. You therefore always dwell in the
hearts of Shri Ram, Lakshman and Sita.
Sukshma roop dhari Siyahi dikhavaYou appeared before Sita in a Diminutive form and spoke to
Vikat roop dhari lanka jaravaher in humility. You assumed an awesome form and struck
terror by setting Lanka on fire.
Bhima roop dhari asur sanghareWith over-whelming might you destroyed the Asuras
Ramachandra ke kaj sanvare(demons) and performed all tasks assigned to you by Shri Ram
with great skill.
Laye Sanjivan Lakhan JiyayeYou brought Sanjivan (A herb that revives life) and restored
Shri Raghuvir Harashi ur layeLakshman back to life, Shri Raghuvir (Shri Ram) cheerfully
embraced you with his heart full of joy.
Raghupati Kinhi bahut badaiShri Raghupati (Shri Ram) lustily extolled your excellence and
Tum mam priye Bharat-hi sam bhaisaid: "You are as dear to me as my own brother Bharat."
Sahas badan tumharo yash gaaveThousands of living beings are chanting hymns of your glories;
Us kahi Shripati kanth lagaavesaying thus, Shri Ram warmly hugged him (Shri Hanuman).
Sankadik Brahmadi MuneesaWhen prophets like Sanka, even the Sage like Lord Brahma,
Narad Sarad sahit Aheesathe great hermit Narad himself, Goddess Saraswati and Ahisha
(one of immeasurable dimensions).
Yam Kuber Digpal Jahan teEven Yamraj (God of Death) Kuber (God of Wealth) and the
Kavi kovid kahi sake kahan teDigpals (deputies guarding the four corners of the Universe)
have been vying with one another in offering homage to your
glories. How then, can a mere poet give adequate expression
of your super excellence.
Tum upkar Sugreevahin keenhaYou rendered a great service to Sugriv. You united him with
Ram milaye rajpad deenhaShri Ram and he installed him on the Royal Throne. By heeding
Tumharo mantra Vibheeshan manayour advice, Vibhishan became Lord of Lanka. This is known
Lankeshwar Bhaye Sub jag janaall over the Universe.
Yug sahastra jojan par BhanuOn your own you dashed upon the Sun, which is at a fabulous
Leelyo tahi madhur phal janudistance of thousands of miles, thinking it to be a sweet
luscious fruit.
Prabhu mudrika meli mukh maheeCarrying the Lord's Signet Ring in your mouth, there is
Jaladhi langhi gaye achraj naheehardly any wonder that you easily leapt across the ocean.
Durgaam kaj jagat ke jeteThe burden of all difficult tasks of the world become light
Sugam anugraha tumhre tetewith your kind grace.
Ram dware tum rakhvare,You are the sentry at the door of Shri Ram's Divine Abode.
Hoat na agya binu paisareNo one can enter it without your permission,
Sub sukh lahai tumhari sarnaAll comforts of the world lie at your feet. The devotees enjoy all
Tum rakshak kahu ko dar nadivine pleasures and feel fearless under your benign Protection.
Aapan tej samharo aapaiYou alone are befitted to carry your own splendid valour. All the
Teenhon lok hank te kanpaithree worlds (entire universe) tremor at your thunderous call.
Bhoot pisach Nikat nahin aavaiAll the ghosts, demons and evil forces keep away, with the
Mahavir jab naam sunavaisheer mention of your great name, O'Mahaveer!!
Nase rog harai sab peeraAll diseases, pain and suffering disappear on reciting regularly
Japat nirantar Hanumant beeraShri Hanuman's holy name.
Sankat se Hanuman chudavaiThose who remember Shri Hanuman in thought, words and deeds
Man Karam Vachan dyan jo lavaiwith Sincerity and Faith, are rescued from all crises in life.
Sub par Ram tapasvee rajaAll who hail, worship and have faith in Shri Ram as the Supreme
Tin ke kaj sakal Tum sajaLord and the king of penance. You make all their difficult tasks
very easy.
Aur manorath jo koi lavaiWhosoever comes to you for fulfillment of any desire with faith
Sohi amit jeevan phal pavaiand sincerity, Will he alone secure the imperishable fruit of
human life.
Charon Yug partap tumharaAll through the four ages your magnificent glory is acclaimed far
Hai persidh jagat ujiyaraand wide. Your fame is Radiantly acclaimed all over the Cosmos.
Sadhu Sant ke tum RakhwareYou are Saviour and the guardian angel of Saints and Sages and
Asur nikandan Ram dulharedestroy all Demons. You are the angelic darling of Shri Ram.
Ashta sidhi nav nidhi ke dhataYou can grant to any one, any yogic power of Eight Siddhis
Us var deen Janki mata(power to become light and heavy at will) and Nine Nidhis
(Riches,comfort,power,prestige,fame,sweet relationship etc.)
This boon has been conferred upon you by Mother Janki.
Ram rasayan tumhare pasaYou possess the power of devotion to Shri Ram. In all rebirths
Sada raho Raghupati ke dasayou will always remain Shri Raghupati's most dedicated disciple.
Tumhare bhajan Ram ko pavaiThrough hymns sung in devotion to you, one can find Shri Ram
Janam janam ke dukh bisravaiand become free from sufferings of several births.
Anth kaal Raghuvir pur jayeeIf at the time of death one enters the Divine Abode of Shri Ram,
Jahan janam Hari-Bakht Kahayeethereafter in all future births he is born as the Lord's devotee.
Aur Devta Chit na dharehiOne need not entertain any other deity for Propitiation, as
Hanumanth se hi sarve sukh karehidevotion of Shri Hanuman alone can give all happiness.
Sankat kate mite sab peeraOne is freed from all the sufferings and ill fated contingencies of
Jo sumirai Hanumat Balbeerarebirths in the world. One who adores and remembers Shri Hanuman.
Jai Jai Jai Hanuman GosahinHail, Hail, Hail, Shri Hanuman, Lord of senses. Let your victory
Kripa Karahu Gurudev ki nyahinover the evil be firm and final. Bless me in the capacity as my
supreme guru (teacher).
Jo sat bar path kare kohiOne who recites Chalisa one hundred times, becomes free from the
Chutehi bandhi maha sukh hohibondage of life and death and enjoys the highest bliss at last.
Jo yah padhe Hanuman ChalisaAll those who recite Hanuman Chalisa (The forty Chaupais)
Hoye siddhi sakhi Gaureesaregularly are sure to be benedicted. Such is the evidence of no less a
witness as Bhagwan Sankar.
Tulsidas sada hari cheraTulsidas as a humble devotee of the Divine Master, stays perpetually at
Keejai Das Hrdaye mein derahis feet, he prays "Oh Lord! You enshrine within my heart & soul."
Pavantnai sankat haran,Oh! conqueror of the Wind, Destroyer of all miseries, you are a
Mangal murti roop.symbol of Auspiciousness.
Ram Lakhan Sita sahit,Along with Shri Ram, Lakshman and Sita, reside in my heart.
Hrdaye basahu sur bhoop.Oh! King of Gods.

Friday, February 10, 2012

इंदिरा गांधी को राजीव की खबर तेजी से लेनी पड़ती थी





वह पुरानी जींस..वे यादें

 
हाईस्कूल की पढ़ाई के बाद राजीव गांधी आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए। इधर अमिताभ ने दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज में एडमिशन ले लिया। लेकिन सरहदें इनके रिश्तों को रोक नहीं पाईं और अब ये दोनों चिट्ठी के द्वारा एक-दूसरे से जुड़े रहे। राजीव नियमित रूप से अमिताभ को पत्र लिखा करते थे। एक बार तो इंदिरा गांधी जी (तत्कालीन प्रधानमंत्री) अचानक कवि हरिवंशराय बच्चन के घर पहुंच गईं और तेजी से पूछ बैठीं ‘मेरा राजीव इंग्लैंड में मजे में तो है न! उसका कोई समाचार?’

 
तेजी ने कहा, ‘अरे वाह! अपने बेटे का समाचार आपके पास ही नहीं?’

 
‘अरे! यही तो मुसीबत है! मुझे तो अपने बेटे की खैर-खबर की जानकारी तुम्हारे बेटे से ही लेनी पड़ती है। राजीव अक्सर मुझे कोई चिट्ठी लिखे या न लिखे, लेकिन अमिताभ के लिए चिट्ठी लिखना बिल्कुल नहीं भूलता।’

 
एक बार जब राजीव इंग्लैंड से वतन वापस आए तो अमिताभ के लिए उपहार लेकर आए.. ‘अमिताभ के हाथों में पैकेट सौंपते हुए बोले, यह तुम्हारे लिए लाया हूं।’

 
इस पैकेट में एक जींस की पेंट थी। अमिताभ की जिंदगी की यह सबसे पहली जींस थी, जिसे उन्होंने वर्षो तक पहना।

 
गगनचुंबी सफर.. लेकिन दोस्ती अटूट

 
राजीव गांधी अब ‘पायलट’ बन चुके थे और अमिताभ ‘अभिनेता’। लेकिन अब भी अटूट दोस्ती के कीच कोई दूरी नहीं आई। कई बार तो अमिताभ ने उस फ्लाइट से सफर किया, जिसे राजीव गांधी उड़ा रहे थे।

 
राजीव गांधी तो अमिताभ से मिलने के लिए इतने आतुर रहा करते थे कि अक्सर वे अमिताभ को फ्लाइट की जानकारी भी दे दिया करते थे कि फलां-फलां दिन इस शहर में इस फ्लाइट में मैं पायलट रहूंगा, अगर तुम्हें कहीं आना-जाना हो इसी फ्लाइट से सफर करना।

 
इतना ही नहीं, जब भी अमिताभ, राजीव की फ्लाइट में होते और जब विमान ‘टेक ऑफ’ करता तो इस समय अमिताभ अपनी पैंसेजर सीट में बेल्ट बांधे बैठे रहते। लेकिन जैसे ही विमान आसमान में पहुंचता तो राजीव उन्हें कॉकपिट में बुला लिया करते।

 
अमिताभ को हमेशा इस बात का आश्चर्य होता कि जब भी फ्लाइट में राजीव गांधी कोई अनाउंसमेंट करते थे तो कभी भी अपना सरनेम नहीं बोला करते थे.. सिर्फ इतना ही कहते ‘आई कैप्टन राजीव’..!

 
राजीव गांधी की सादगी और सरलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कभी भी अपना परिचय देते समय वे किसी से यह नहीं कहते थे कि मैं भारत की प्रधानमंत्री का बेटा हूं।

 
इसके साथ ही राजीव ने अपनी निजी जिंदगी की कोई भी बात अमिताभ से कभी नहीं छुपाई। एक बार की की बात है जब राजीव विदेश से भारत आए तो इस बार उनके हाथ में एक फोटो एलबम था। एलबम अमिताभ के सामने खोलते हुए उन्होंने अमिताभ से पूछा..‘अमित, यह लड़की तुम्हें कैसी लगी?’

'अमिताभ के बर्थडे पर राजीव गांधी को देख चौंक गए थे लोग'




शरद ठाकर।अमिताभ बच्चन की चौथी (4) वर्षगांठ एक ऐसा यादगार लम्हा है, जिसे कभी भुलाया ही नहीं जा सकता। तेजी बच्चन इस समय तक इलाहाबाद के संभ्रांत, संस्कारी व सामाजिक माहौल में अपनी अलग ही पहचान बना चुकी थीं। मुन्ना के चौथे जन्मदिवस के अवसर पर घर में एक पार्टी रखी गई थी, जिसमें शहर के कई चुनिंदा लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी।

पार्टी की रंगत अपने चरम पर थी तभी अचानक वहां कुछ देर के लिए खामोशी पसर गई। इस महफिल में एक खूबसूरत महिला ने अपने दो वर्ष के बेटे के साथ प्रवेश किया।

इन्हें देखते ही उपस्थित सभी मेहमान एक-दूसरे के कान में फुसफुसाने लगे.. 'यह इंदिरा जी हैं'...'फिरोज खान की पत्नी'...'प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की बेटी'...।

हमने तो इंदिरा जी को वृद्धावस्था में देखा, तब भी उनके जादुई व्यक्तित्व के पीछे पूरा देश पागल था। सोच सकते हैं कि युवावस्था में उनके चेहरे पर कितना नूर होगा।

इंदिराजी आगे आईं और तेजी से बोलीं.. 'लो मैं तुम्हारे छोटे से लाड़ले को ले आई हूं।' ऐसा कह, उन्होंने बेटे को आगे कर दिया... यह बच्चा कोई और नहीं, बल्कि राजीव गांधी थे। इस तरह अमिताभ और राजीव गांधी की पहली मुलाकात हुई।

दरअसल जन्मदिवस की इस पार्टी के अवसर पर यहां फैंसी ड्रेस कॉम्प्टीशन भी आयोजित किया गया था। इसलिए सभी बच्चे अलग-अलग और रंग-बिरंगी पोशाकों में सजे हुए थे। लेकिन राजीव गांधी धोती-कुर्ते में थे। घुटने से थोड़े ऊपर तक की धोती-कुर्ता और सिर पर टोपी।

जबकि अमिताभ (अमित) ने फौजियों की ड्रेस पहन रखी थी। चार वर्षीय अमित ने दो वर्षीय राजीव का प्रेमपूर्वक अभिनंदन किया। अपना दायां हाथ राजीव के बाएं हाथ में डाले हुए घूमते रहे। लेकिन कार्यक्रम के मुश्किल से आधे घंटे ही बीते होंगे कि राजीव गांधी की धोती खुल गई। राजीव इतने छोटे थे कि वे अपने कपड़े तो संभाल नहीं सकते थे। इंदिराजी ने तुरंत उनके कपड़े बदल दिए और चूड़ीदार पायजामा, खादी का कुर्ता और टोपी पहना दी। अब राजीव बिलकुल राजनेता दिखने लगे।

हम भारतीयों ने तो दशकों बाद राजीव गांधी को राजनेता की पोशाक में देखा लेकिन अमिताभ ने उन्हें 4 वर्ष की उम्र में ही इस पोशाक में देख लिया था।

दोनों के बीच गहरी मित्रता थी। एक बार अमिताभ ने राजीव से कहा भी कि तू इसी गेटअप में जंचता है। देखना एक दिन तू जरूर राजनेता बनेगा।

लेकिन उस समय राजीव को राजनेता बनना पसंद नहीं था। किशोरावस्था से ही उनकी रुचि उपकरणों और इलेक्ट्रिक चीजों में ज्यादा रही। रेडियो, टेपरिकॉर्डर, चाभी से चलने वाले खिलौने, बैटरी से उडऩे वाले विमान जैसे खिलौनों में राजीव गांधी की इतनी रुचि थी कि वे अक्सर इन्हें खोल दिया करते थे और इंजीनियर की तरह उसके पुर्जों की जांच-परख में लग जाया करते थे।

काश, विधाता ने उन्हें विमान की कॉकपिट से उठाकर प्रधानमंत्री के सिंहासन पर न बिठाया होता।

घर था इधर-उधर
इलाहाबाद में कवि बच्चनजी के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे खुद के लिए एक मकान खरीद सकते। वे अधिकतर समय किराए के मकानों में ही रहे। इसके अलावा उनकी कुंडली में स्थिरता का योग तो जैसे था ही नहीं। निश्चित समयांतर पर उन्हें कई मकान बदलने पड़े।

बैंक रोड, स्ट्रैची रोड, एडल्फी हाउस और इसके बाद क्लाइव रोड स्थित मकान... इलाहाबाद के ये तमाम पुराने मकान आज अमिताभ के चाहने वालों के लिए तीर्थधाम बन चुके हैं। लेकिन उस समय इन सभी घरों में कवि की गरीबी और तेजी के आंसू ही बसा करते थे।

अमितजी के शैशवकाल की अनेक यादें इन मकानों से जुड़ी हुई हैं...

एडल्फी हाउस की बात करें तो यहीं पर अमिताभ की मुलाकात राजीव गांधी से हुई थी और इसी घर में ही अमिताभ के छोटे भाई अजिताभ का जन्म हुआ था। इसके डेढ़-दो महीनों बाद ही भारत अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ था। अमिताभ ने स्कूल जाने की शुरुआत भी यहीं से ही की।

इसी मकान से एक और कड़वी याद जुड़ी हुई है... एक बार शाम के समय कवि हरिवंशराय बच्चन घर आते ही रो पड़े.. तेजी ने उनसे पूछा कि क्या बात है... कवि ने जवाब दिया... 'महात्मा गांधी की हत्या हो गई। हम अनाथ हो गए'।

इधर, बैंक रोड स्थित मकान में जब बच्चन परिवार रहा करता था.. तब अमिताभ को एक बार बहुत तेज बुखार आया था। और उनके स्वस्थ होने के लिए कवि ने प्रतिज्ञा की थी कि उनका बेटा स्वस्थ हो जाए... वे जीवन में कभी भी शराब को हाथ तक नहीं लगाएंगे।

स्ट्रैची रोड स्थित मकान में अमिताभ की वयोवृद्ध दादी मां सुरसती का देहांत हुआ था। इसी समय अमित ने पिता बच्चन से पूछा था ... 'दादी कहां गई?'.. तो बच्चन ने कहा... 'भगवान के पास...'

हालांकि यह सस्ता जमाना था। किराए से मकान आसानी से और कहीं भी मिल जाया करते थे। लेकिन तेजी जब पिताजी के घर थीं तो उनका जीवन शानो-शौकत वाला था। इसलिए उन्हें हमेशा बड़े मकान ही पसंद आया करते थे।

40 के दशक में जब इलाहाबाद में सामान्य मकान का किराया 5 या 7 रुपए हुआ करता था, तब भी बच्चनजी 30-35 रुपए तक किराए के मकान के लिए प्रतिमाह खर्च किया करते थे। मकान को सजाने-संवारने की पूरी जिम्मेदारी तेजी की थी।

कवि तो अधिकतर समय नौकरी और कविताओं के सृजन में या कार्यक्रमों के चलते घर से बाहर ही रहा करते थे। कभी-कभी इनके रहन-सहन को देखकर मकान मालिक भी बेजा फायदा उठाने से नहीं चूकते थे। बच्चन परिवार को पता ही नहीं चलता था और मकान का किराया बढ़ जाया करता था। 30 रुपए किराया रातों-रात 50 रुपए भी हो जाया करता था। जहां तक हो सके वहां तक तेजी मकान मालिकों को सहयोग ही किया करती थीं। बहस या दादागिरी जैसे शब्द तो उनकी जिदंगी की डिक्शनरी में जैसे थे ही नहीं।

इसी तरह बैंक रोड स्थित एक मकान का वाकया है.. यहां मकान मालिक ने अचानक ही मकान का किराया 50 रुपए से बढ़ाकर 75 रुपए कर दिया। कवि इस समय घर पर नहीं थे, किसी काम से दूसरे शहर गए हुए थे। तेजी ने सोचा, यह बात उन्हें बतानी ठीक नहीं.. वे इसे लेकर ङ्क्षचतित हो उठेंगे।

तेजी ने खुद ही दूसरा मकान ढूंढऩा शुरू कर दिया और स्ट्रैची रोड स्थित एक सुंदर और बड़ा बंगला मिल गया। इसकी कीमत भी कम थी। तेजी ने रातों-रात बैंक रोड का यह मकान खाली कर दिया और समान बटोर यहां शिफ्ट हो गईं।

कवि को तो यह बात उनके वापस आने पर ही मालूम हुई। लेकिन वे तेजी की हिम्मत और सूझ-बूझ देख दंग रह गए।

... कुछ ऐसा ही ऐडल्फी हाउस में भी हुआ। इस मकान मालिक ने अचानक ही उन्हे मकान खाली करने का फरमान सुना दिया। कवि चाहते तो मकान मालिक के खिलाफ अदालत भी जा सकते थे, लेकिन वे सीधे-सादे और नम्र स्वभाव के व्यक्ति थे, वे इस तरह का कोई कदम उठाने के पक्ष में नहीं थे।

अमिताभ के मन पर ये बातें गहरा प्रहार किया करती थीं। काल चक्र घूमता रहा... तकदीर ने करवट ली और अब अमिताभ के नाम का सिक्का चलने लगा था। उन्होंने इलाहाबाद जाकर इन मकानों (जहां वे रह चुके थे) की खोजबीन शुरू कर दी।

दोस्तों ने जानकारी दी... 'वह मकान तो अब जर्जर अवस्था में पहुंच गया है, देखने में भी बिल्कुल अच्छा नहीं लगता।'

दोस्तों की इस बात पर अमिताभ ने उस समय कुछ नहीं कहा, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने कई मकान खरीद लिए। मकान बेचने वाले भी अब तक यह बात जान चुके थे कि अमिताभ ये मकान क्यों खरीद रहे हैं। अमिताभ जैसे महारथी जब ये मकान खरीद रहे थे तो मकान मालिक भी उनसे क्या ज्यादा कीमत वसूलते? फिर भी अमिताभ ने बिना तोल-भाव के वे मकान खरीद लिए, जहां कभी उनकी पिता की गरीबी और मां के आंसू टपकते थे।

दोस्तों-परिचितों-सगे संबंधियों को जब यह बात मालूम हुई तो सभी ने अमिताभ से कहा कि 'तुम्हें व्यापार करना नहीं आता, अगर तुमने मोल-भाव किया होता तो यही मकान कम कीमत में भी मिल जाते..!'

इसका अमिताभ ने क्या जवाब दिया होगा...? हम अंदाजा लगाते हैं तो इसके जवाब के लिए फिल्म 'दीवार' का यह दृश्य और संवाद बिल्कुल सटीक बैठता है... फिल्म के दृश्य में एक इमारत के लिए बाजार भाव से भी अधिक कीमत चुकाने की बात पर अमिताभ और मकान मालिक के बीच संवाद होता है...

मालिक कहता है... 'आपको सौदा करना नहीं आता, अगर आपने थोड़ी भी खींचतान की होती तो यह मकान आपको सस्ते में भी मिल सकता था...!'

अमिताभ जवाब में कहते हैं... 'माफ करना, बिजनेस करना तो आपको नहीं आता!अगर आप इस बिल्डिंग के लिए और भी कीमत मांगते तो वह भी आपको मिल जाती...!'

मकान मालिक आश्चर्यचकित मुद्रा में अमिताभ से पूछता है... 'ऐसी कौन सी खास बात है इसमें...'

अमिताभ जवाब देते हैं... 'यह बिल्डिंग जब बन रही थी, तब मेरी मां ने यहां ईंटें उठाई थीं...!'

'हम जहां खड़े हो जाते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है'





शरद ठाकर। आईए, इस ऐतिहासिक घटना का हिस्सा बनिए। गुजरात के साहित्य इतिहास में एक और नवलकथा लिखी जा रही है और इसके कथाकार हैं गुजरात के जाने-माने लेखक डॉ. शरद ठाकर। बच्चन युग से चले आ रहे भारतीय सिनेमा जगत के इस ऐतिहासिक सफर में हम आपको भी हमसफर बनाने जा रहे हैं। आपके पास भी ऐसी कोई कहानी है तो उसे हमें भेज दें। अगर आपकी कहानी पसंद आएगी तो उसे भी अमिताभ बच्चन पर प्रकाशित होने वाली इस पुस्तक का अहम हिस्सा बनाया जाएगा...।

प्रिय पाठक मित्रो, अगर आप गुजराती हैं तो शायद आपने मेरा नाम सुना होगा। पिछले 18 वर्षों से मैं 'डॉक्टर की डायरी' तथा 'रण में खिला गुलाब' नामक व्यंग्य लिखता आ रहा हूं। अब तक मेरी 30 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मेरे लेखों और किताबों को लेकर आपकी ओर से मुझे जो प्रतिसाद मिला, उसके लिए मैं आपका ऋणी हूं।

लिखने का मेरा सफर निरंतर जारी है और मैं एक बार फिर से एक नया शब्द-साहस करने जा रहा हूं। इस बार मैं हिंदी फिल्म जगत के महानायक अमिताभ बच्चन पर लिखने जा रहा हूं। मैं जानता हूं कि अमित जी को जितना मैं पसंद करता हूं, उतना ही आप भी उन्हें पसंद करते हैं। मुझे विश्वास है कि इस महानायक के जीवन सफर में हमसफर बनकर आपको भी बहुत मजा आएगा। आपका, डॉ. शरद ठाकर

डॉक्टर की डायरी के पन्ने:
अमिताभ बच्चन एपिसोड-1 'हम जहां खड़े हो जाते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है' बात 1971 की है जब मेरी उम्र 16 वर्ष के आसपास थी। एस.एससी बोर्ड की फाइनल परीक्षा हो चुकी थी और दो-ढाई महीने का लंबी छुट्टियां थीं। परीक्षा में मैं हमेशा ही प्रथम श्रेणी में पास हुआ करता था। पिताजी शिक्षक और पढ़ाई के मामले में बहुत सख्त थे। उस समय घर में रेडियो बजाने तक की मनाही थी और फिल्में देखना तो घोर पाप जैसा था। इस तरह हमारे घर का सिनेमा जगत से लगभग दूर तक कोई रिश्ता नहीं था और तब मैं किसी अभिनेता या अभिनेत्री का नाम तक नहीं जानता था।

लेकिन यह मुझे अच्छी तरह याद है कि उस समय एक सिनेमाई सितारे का नाम प्राणवायु की तरह चारों ओर छाया हुआ था और वह नाम था- राजेश खन्ना। किसी भी शहर में चले जाइए, उनकी एक-दो फिल्में तो किसी न किसी सिनेमाघर में लगी ही होती थीं। उनकी हेयर स्टाइल, उन पर फिल्माए गए गीत, संवाद, उनके कपड़े पहनने के तरीके मसलन उनकी हर एक अदा और हर एक चीज एक फैशन बन चुकी थी। राजेश खन्ना की इतनी प्रसिद्धि को लेकर मेरा भी मन हुआ कि उनकी कोई फिल्म देखी जाए, लेकिन पिताजी से यह कहने की मुझमें हिम्मत नहीं थी कि - मुझे फिल्म देखनी है।

एक बार मैं शीत ऋतु में अहमदाबाद आया हुआ था। लाल रंग की सिटी बस में बैठा खिड़की से आंखे फाड़-फाड़कर अहमदाबाद की चकाचौंध निहार रहा था कि उसी समय मुझे फिल्म 'आनंद' का पोस्टर दिखाई दिया। पोस्टर में राजेश खन्ना का मुस्कुराता हुआ चेहरा और उनका नाम लिखा हुआ था। पोस्टर पर मुख्य कलाकारों के नामों की भी सूची थी, जिसमें एक और अनजाना सा नाम भी था- अमिताभ बच्चन।

मैंने कलाकारों के नाम पढ़े ही थे कि तभी बस चल दी, लेकिन जाते-जाते मैंने इस नाम को भी याद करने की कोशिश की। पहली बार में नाम कुछ कठिन सा भी प्रतीत हुआ और मैंने मन ही मन कहा कि कितना कठिन नाम रखा है। फिल्मी दुनिया में तो कम से कम नाम इतने सरल होने चाहिए कि एक झटके में ही याद हो जाएं।

उन दो महीनों में मैंने कई लोगों से सिर्फ एक ही नाम सुना 'राजेश खन्ना'। जब भी फिल्मों की बातें होती तो कोई न कोई यह कह ही देता कि 'आनंद' फिल्म देखी तुमने? इस फिल्म की चारों ओर इतनी चर्चा थी कि यह बात पिताजी के कानों तक भी पहुंच गई। अंतत: हाईकमान की ओर से हरी झंडी मिली कि अगर फिल्म साफ-सुथरी होगी तो बच्चों को भी दिखाई जाएगी।

इसके बाद जूनागढ़ की जयश्री टॉकीज में मैंने यह फिल्म (आनंद) देखी। फिल्म देखने के बाद मैंने भी यह स्वीकार कर लिया था कि यह फिल्म राजेश खन्ना की ही थी। फिल्मी पर्दे पर तो उस समय जैसे राजेश खन्ना ने कोई जादू कर रखा था। दूसरे दिन मेरी भी दोस्तों से इस फिल्म को लेकर बातें हुईं तो उनसे मैंने अपने मन की भी बात कह ही दी -फिल्म में डॉ. भास्कर...अरे जिसे राजेश खन्ना बाबू मोशाय कहकर बुलाते हैं ... वह भी जबर्दस्त कलाकार है यार! उसकी आवाज में इतनी कशिश है कि बार-बार सुनने को दिल करता है और उसकी आंखें! उफ्फ...!

सचमुच मुझे तो यह नायक पहली बार में ही जंच गया था। लंबा-दुबला और अलग ही तरह की हेयर स्टाइल। न उसके चलने का ढंग अच्छा था न ही खड़े होने का। न जाने संवाद बोलते समय वह अपने लंबे-लंबे हाथ क्यों हिलाता है, यह बात कुछ समझ ही नहीं आती थी। फिर भी उसकी अदाएं मेरे मन को छू गईं थीं।

'आनंद' फिल्म के तीन दृश्य तो मेरे मन-मस्तिष्क पर पूरी तरह छा गए थे...। झोपड़-पट्टी में गरीब मरीजों के बीच की देखरेख करता डॉ. भास्कर....बोल उठता है: आज आनंद बात करते-करते हांफने लगा। मौत की पहली निशानी सामने आ गई।

और फिल्म का अंतिम दृश्य था: आनंद की मृतदेह को पकड़कर रोता, चिल्लाता अमिताभ। इन्हीं दृश्यों को याद कर-कर के मैंने अपने दोस्तों से कहा- इस बंदे में दम लगता है। मैंने उसी समय मान लिया था कि भले ही 'आनंद' फिल्म राजेश खन्ना की फिल्म थी, लेकिन मुझे तो यह 'बाबू मोशाय' भी कम नहीं लगा।

दोस्तों ने यह बात सुनते ही मुझे चुप करा दिया और कहा - खबरदार! अब अगर काका (राजेश खन्ना) के बारे में एक शब्द भी बोला तो। एक दोस्त ने तो यहां तक कहा - तुझे मालूम है पूरी फिल्म इंडस्ट्रीज में एक कहावत है - ऊपर 'आका' और नीचे 'काका'! फिल्म में काका के रहते तू किसी और की तारीफ कर रहा है। जस्ट शट-अप!

उस समय मैं चुप हो गया, क्योंकि यह बात सही भी थी। लेकिन विधाता नाम के जादूगर के हाथ तो लगातार दोनों कामों (नया लिखने और पुराना मिटाने) में व्यस्त रहते हैं और वे निरंतर नया लिखते और पुराना मिटाते जाते हैं। मतलब इसी को कहते हैं- समय का चक्र।

ठीक चार वर्ष बाद ऐसा ही कुछ हुआ। अब हिंदुस्तानी फिल्म इंडस्ट्रीज में एक नई कहावत जन्म ले चुकी थी : ऊपर 'आभ' और नीचे 'अमिताभ'! इस समय तक मेरा जीवन चक्र भी एक नए परिवर्तन की दिशा में घूम चुका था। मैं जूनागढ़ जिले के तीनों केंद्रों में एसएससी की परीक्षा में प्रथम आया और पूरे सौराष्ट्र में दूसरे क्रमांक पर। इसके बाद मैंने साइंस कॉलेज में प्रथम वर्ष पूर्ण किया और जामनगर के मेडिकल कॉलेज से जुड़ गया। इस उम्र में पहुंचने तक अब पिताजी ने भी अपना नियंत्रण मुझ पर से पूरी तरह हटा लिया था। अपनी मर्जी का मालिक बनते ही मैंने सबसे पहले एक ही काम किया - फिल्में देखने का।

दिन भर की भागदौड़, रात-रात का जागरण लेकिन इस पर भी फिल्म के लिए तीन घंटे का समय तो निकाल ही लिया करता था। साढ़े चार वर्ष के दौरान मैंने राजकपूर, देव आनंद, मनोज कुमार, शशि कपूर, शम्मी कपूर, धर्मेंद और अमिताभ की अनेकों फिल्में देख डाली थीं।

हिंदी फिल्म इतिहास के उन सुनहरे वर्षों के लगभग तमाम अभिनेता-अभिनेत्रियों, गायक-गायिकाओं, गीतकारों, फिल्मकारों, संगीतकारों की छोटी-छोटी बातों की भी मुझे जानकारी है तो वह कॉलेज के उन्हीं चार वर्षों की वजह से। उन वर्षों में फिल्मी दुनिया से मेरे लगाव का ही यह परिणाम है कि पिछले पंद्रह वर्षों से मैं लगातार एक म्युजिकल क्लब का संचालन करता आ रहा हूं।

मुझे लगभग सभी कलाकार पसंद हैं - मधुबाला, नरगिस, नूतन और वहीदा जैसी अभिनेत्रियां आज भी मेरे सांसों की सुगंध की तरह हैं तो राज-दिलीप-देव मेरे लिए ब्रह्मा-विष्णु-महेश त्रिदेव की जोड़ी की तरह। साहिर लुधियानवी को पसंद करने की मेरी हद नहीं और मोहम्मद रफी साहब, तलत साहब और हेमंत कुमार की तारीफ के लिए मेरे पास शब्द नहीं।

यह सूची लंबी और शाश्वत है। अगर मेरे लिए संभव हो पाया तो मैं इन सबके बारे में एक-एक किताब जरूर लिखूंगा। लेकिन फिलहाल तो मेरी हालत 'तंग दामन, वक्त कम और गुल बेशुमार' शेर की पंक्तियों जैसी ही है।

मसलन, लिखने के लिए मेरे सामने कई प्रख्यात नाम थे। गम में डूबे दिलीप कुमार थे तो रम में डूबे सहगल साहब। संगीत के भीष्म पितामह अनिल विश्वास थे तो मखमल के मालिक तलत साहब। यह लाइन लंबी थी लेकिन फिर भी शांत और शिस्तबद्ध थी। लेकिन इनमें से एक कलाकार, आसमान की तरह ऊंचा और सागर की तरह गहरा। मेरी नजरों के सामने इस तरह खड़ा था, जो अपनी जगह से टस से मस ही नहीं होना चाहता था। अंतत: वह सभी फिल्मी कलाकारों के नामों की लाइन तोड़कर मेरे सामने आ गया। मैंने उसे लाख समझाया वही नहीं माना। अंत में मैंने कहा : कृपया प्रतीक्षा कीजिए, आप अभी लाइन में हैं!

और उसी समय मुझे एक गरजती हुई आवाज में जवाब मिला - अपुन जिधर खड़ा रह जाता है, लाइन वहीं से शुरू होती है!

मित्रो, फिल्म 'कालिया' का यह संवाद अमिताभ द्वारा फिल्म के एक दृश्य में खलनायक को दिया गया जवाब नहीं था, बल्कि यह तो 1913 से शुरू हुई बोलती फिल्मों से लेकर आज तक के अभिनेताओं के लिए दिया गया जवाब है। इसीलिए तो आज अमित जी जहां भी खड़े होते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है।

फिल्म 'सात हिंदुस्तानी' की नगण्य सफलता को नजरअंदाज करें तो हिंदी सिनेमा के इतिहास में बाबू मोशाय का जन्म हुआ था 1971 में आई फिल्म 'आनंद' से। अगर उनकी 6 फिट लंबी काया में समाए हुए आसमान की तरह ऊंचे व्यक्तित्व की बात करें तो उनका जन्म हुआ था-

तारीख 11.10.1942 के दिन कटरा शहर में डॉ. ब्रॉर के नर्सिंग होम में। इस दिन श्रीमती तेजी हरिवंशराय बच्चन नाम की महिला ने एक बालक को जन्म दिया। नॉर्मल डिलीवरी थी। बालक का वजन साढ़ आठ पौंड और शरीर की लंबाई थी 52 सेंटीमीटर।

नवजात शिशु को माता की गोद में सौंपते समय डॉ. ब्रार बोली- बच्चे की लंबाई बहुत अच्छी है। लगता है बड़ा होकर बहुत ऊंचा होगा।
'बड़ा होकर सिर्फ ऊंचा ही नहीं बल्कि महान भी होगा!' मुझे लगता है यह वाक्य विधाता ने कहा होगा, लेकिन उस समय यह वाक्य कोई सुन न सका।

जब 'बिग-बी' को नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं...!




शरद ठाकर।अच्छा ही हुआ कि सरकारी अधिकारियों की वजह से अमितजी को आकाशवाणी में नौकरी नहीं मिली। नहीं तो हमें आज देश भर में प्रसारित हो रहे सीरियल 'कौन बनेगा करोड़पति' में बिग बी की यह आवाज नहीं सुनने मिलती...नमस्कार देवीयों और सज्जनों, मैं अमिताभ बच्चन 'कौन बनेगा करोड़पति' में आपका स्वागत करता हूं...!

आखिरकार एक दिन कवि बच्चन ने अमिताभ से कहा, 'मुझे लगता है तुम्हें कोलकाता जाना चाहिए। वहां मेरा एक दोस्त रहता है, जिसका नाम मिस्टर गजानंद है। साथ ही कवि का कहना था कि कोलकाता शहर किसी को निराश नहीं करता।'

अमितजी कोलकाता में गजानंद अंकल के घर पहुंच गए। नौकरी के लिए उन्होंने यहां एक-एक दिन में 15-15 तक आवेदन किए। इसके अलावा अमिताभ खाली समय में फुटबाल मैच देखने से भी नहीं चूकते थे। अगर टिकट खरीदने के पैसे नहीं होते थे तो वे दीवार पर चढ़कर मैच देखा करते थे। मोहन बागान उनकी प्रिय टीम थी। अपने पसंदीदा खिलाडिय़ों को देखने के लिए अमितजी किराए की दूरबीन भी ले आया करते थे।

आज भी उनका फुटबाल के प्रति लगावा बिल्कुल कम नहीं हुआ है। हम जितनी एकाग्रता के साथ अमिताभ की फिल्में देखा करते हैं उससे कहीं ज्यादा रुचि से वे फुटबाल का मैच देखा करते हैं। दुनिया में कहीं भी दो अच्छी टीमों के बीच फुटबाल का खेल हो रहा हो, अमितजी लाइव नहीं देख पाएं तो तो उसकी सीडी या डीवीडी तक मंगा लेते हैं। आज कोलकाता छूट गया, खिलाड़ी बदल गए, फिर भी अमितजी मोहन बागान के जबर्दस्त फैन हैं।

एक दिन 'बर्ड एंड हिल्जर्स' नामक कंपनी की ओर से उन्हें इंटरव्यू के लिए बुलावा आया। इंटरव्यू में अमिताभ पास हो गए। कुछ दिनों में ही उन्हें नियुक्ति पत्र मिल गया। पोस्टमैन जब यह पत्र लेकर आया तो गजानंद अंकल घर में उपस्थित नहीं थे। पोस्टमैन ने नियुक्ति पत्र सीधा अमितजी के हाथों में थमा दिया। अमिताभ की खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने तुरंत ही दिल्ली फोन कर पिताजी को यह शुभ समाचार सुनाया। अंत में पूछा! बाबूजी, मैं क्या करूं, यह नौकरी ले लूं? बाबूजी ने जवाब दिया... बेटा, यह तुम्हारे जीवन की पहली नौकरी है, इसे स्वीकार कर लो और जीवन में एक बात हमेशा याद रखना कि यह नौकरी तुम्हें तुम्हारी योग्यता के कारण मिली है, किसी की सिफारिश से नहीं।

यह 1993 जुलाई का महीना था। कोलसा विभाग में काम करना था। नियत तनख्वाह 500 रुपए मासिक थी। इसमें से कटौती के बाद अमित के हाथ में 470 रुपए आया करते थे। ट्रेनिंग के लिए अमितजी को आसनसोल, धनबाद और हजारीबाग की खदानों में जाना था।

इसी तरह की ट्रेनिंग के दौरान एक बार वे एक दुर्घटना के शिकार हो गए। अमितजी कोलसा की खदान में जब टे्रनिंग ले रहे थे, तभी एक चट्टान धसक गई और वे खदान के अंदर फंस गए। दूसरी तरफ पानी भी तेज प्रवाह से खदान में भरने लगा। जिंदगी का अंत बहुत नजदीक दिखाई दे रहा था, तभी एक बचाव दल ने उन्हें बचा लिया। इसी घटना को वर्षांे बाद फिल्म 'कालिया' के एक दृश्य में भी फिल्माया गया।

जिस दिन अमित के हाथों में पहली तनख्वाह आई, उनकी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। उन्होंने अपनी इस पहली तनख्वाह में से बाबूजी के लिए पेन, मां के लिए साड़ी और छोटे भाई बंटी (अजिताभ) के लिए शर्ट खरीदी थी। परिजनों के अलावा अमिताभ गजानंद अंकल के लिए भी गिफ्ट लेना नहीं भूले थे।

अमिताभ ने जब अपनी पहली तनख्वाह से परिवार के लिए उपहार खरीदे, यह उनकी जिंदगी की पहली और आखिरी घटना थी। 470 की रकम उस जमाने में काफी हुआ करती थी। अमितजी कोलकाता में पांच वर्ष रहे और कुल दो जगह ही नौकरी की। उनकी आखिरी तनख्वाह 1640 रुपए थी। इतनी तनख्वाह में एक परिवार सुख-चैन की जिंदगी गुजार सकता था। लेकिन अमितजी के हाथ खर्चीले हो गए थे। वह अपनी पूरी तनख्वाह मौज-मस्ती में ही उड़ा दिया करते। महंगे कपड़े, ब्रांडेड घडिय़ां, टाई, जूते के अलावा अलग-अलग तरह की कफलिंग्स का भी उन्हें काफी शौक था। अब जिस व्यक्ति के ऐसे शौक हों तो वह परिवार के लिए पैसे बचा भी कैसे सकता है?

इसके उलट हर दो-चार महीने में बाबूजी को दिल्ली से बेटे के लिए मनीऑर्डर करना पड़ता था। अब प्रश्न यह उठता है कि अतिम आखिर इतने सारे पैसे कहां उड़ा दिया करते थे? इसका रहस्य बहुत रोमांचक है...जिसकी कहानी आगामी अंक में बताएंगे।

कोलकाता में अमिताभ ने कुल 5 वर्ष का समय बिताया। 1963 से 1968 के बीच उन्होंने मात्र दो जगह ही नौकरियां की। लेकिन उनके पैरों में स्थिरता नहीं थी। मकानों की पसंद को लेकर वे हमेशा कन्फ्यूज रहे। इन पांच वर्षों में उन्हें कुल बीस मकान बदले। एक बार दिल्ली आकर वे अपनी ढोलक ले गए। बाबूजी को यह बात बहुत अजीब लगी कि आखिर खदान में काम करने वाले मेरे बेटे को ढोलक की जरूरत क्यों आन पड़ी?

उन्हें क्या पता था कि नौकरी के बाद उनके लाड़ले की मित्रमंडली के साथ शानदार पार्टी हुआ करती थी। प्रतिदिन शाम को सिगरेट के धुंए और व्हिस्की की आग के बीच ढोलक पर थाप मारते हुए भोजपुरी जुबान में उत्तरप्रदेश का एक लोकगीत गाया करते थे। जिस गीत को सुनकर बंगाल की सश्यश्यामला युवतियां उन पर फिदा हो जाया करती थीं और भविष्य में इसी गीत पर पूरा देश झूमने वाला था... अमितजी का यह गीत था... मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है...

Amitabh Bachchan Story in Doctor Diary




शरद ठाकर,अहमदाबाद।फिल्म का नाम याद नहीं लेकिन इस फिल्म का एक डॉयलॉग शब्दश: याद है, जिसमें फिल्म के नायक अमिताभ बच्चन बोलते हैं 'पैसे आते नहीं, पैसे पैदा किए जाते हैं।' इस जालिम जमाने में पैसे उगाहने के तरीकों में मैं पड़ना नहीं चाहता। लेकिन बच्चन साहब की रौबदार और दादागिरी भरे अंदाज में बोले गए ये शब्द मुझे बहुत पंसद हैं।

1973-74 में देखी फिल्म 'दीवार' का एक दृश्य भी मुझे छू गया था। इस फिल्म में स्मगलर इफ्तेखार जब अमिताभ के काम से खुश होकर अपना ऑफिस उनके हवाले कर देते हैं, तब अमित एक पल के लिए ऊंची इमारत के कांच से बाहर सड़क पर नजर दौड़ाते हैं और उनकी आंखों के सामने उनके दुखद अतीत के दृश्य आ जाते हैं। उनकी गरीब मां कपड़ों की पोटली और दो बच्चों के साथ मुंबई की सड़कों पर भिखारी की तरह भटक रही है और बड़े बेटे के हाथ पर लिखा हुआ है : 'मेरा बाप चोर है।'

ये क्षण अमित के मन में चल रहे द्वंद्व के क्षण हैं। कहते हैं गलत रास्ते पर जाने से पहले मनुष्य का उसकी अंतरात्मा एक बार संवाद जरूर होता है। अमित पहला दृश्य याद कर स्मगलर का यह मुख्य ओहदा स्वीकारने के लिए तैयार हो जाते हैं।

इफ्तेखार तो वहां से चला जाता है, लेकिन इसके बाद अमित गद्दीदार रिवॉल्विंग चेयर पर बैठकर अदाओं के साथ देबल पर अपने पैर फैला लेते हैं और उनकी इस हरकत से अनेक संदर्भ अपने आप प्रकट हो जाते हैं। जब मैंने यह फिल्म (दीवार) देखी, तब मेरी उम्र 19 वर्ष थी। मैं तब फर्स्ट एम.बी.बी.एस में था। लेकिन इस फिल्म में अमिताभ का अभिनय और बोले गए उनके एक-एक शब्द और संवाद ने मुझ पर इतना असर किया कि लगातार तीन दिन तक मैंने यह फिल्म दो-दो बार देखी थी, जबकि वार्षिक परीक्षा मेरे सिर पर थी।

सलीम-जावेद की जोड़ी ने कितने जोशीले संवाद लिखे थे कि लंबे, दुबले-पतले अमिताभ और उनकी नई तरह की हेयर स्टाइल के कारण वे इतने हैंडसम, स्मार्ट और डायनैमिक लगते थे कि आज तक उनके सामने बड़े-बड़े सुपर स्टार बगले झांकते हुए नजर आते हैं। अमिताभ को यह नया हेयर लुक हबीब नामक हेयर-आर्टिस्ट ने दिया था, जो फिल्म 'जंजीर' में पहली बार दिखाई दिया।

फिलहाल हम बात कर रहे थे - 'बहुत कम मेहनत' और 'बहुत कम समय' में 'बहुत से पैसा' कमाने की। अमिताभ का यह फिल्मी डॉयलॉग उनकी व्यक्तिगत जिंदगी से भी जुड़ा हुआ है। दरअसल अमिताभ का बचपन सीमित ऐशो-आराम में ही व्यतीत हुआ है। पिता हरिवंशराय बच्चन इलाहाबाद में अध्यापक थे तो सीधी सी बात है कि पगार भी सीमित थी।

माता तेजी बच्चन एक उच्च स्तर की लाइफ स्टाइल में जीने वाली महिला थीं। उनकी सोच अलग ही तरीके के थी। घर भले ही किराए का हो, लेकिन होना बड़े आकार का चाहिए। कपड़े भले ही कम हों, लेकिन अच्छी क्वालिटी के होने चाहिए। घर में तीज-त्यौहारों-पार्टियों का बोलबाला था। इसके अलावा घर की सजावट, रंगों की पसंद, और साथ ही उन्हें फोटोग्राफी और बागवानी का भी बहुत शौक था। कवि पिता कितना भी कमाएं लेकिन इन खर्चों के आगे तो बहुत थोड़े ही थे।

इन परिस्थितियों में ही अमिताभ की जिंदगी से दो प्रसंग जुड़ते हैं कि उस समय नन्हा अमिताभ क्या सोचता होगा। उसके दिल में अधिक से अधिक पैसा कमाने की कामना कब जन्मी होगी या नहीं?

ये हैं वे प्रसंग-
पहला प्रसंग इलाहाबाद का ही है। तेजी दोनों बच्चों के साथ मुश्किलों से घर का खर्च चला रही थीं क्योंकि पति विलायत में रहकर पीएचडी कर रहे थे। विलायत में पढ़ाई का निर्धारित समय पूरा हो चुका था, तभी कवि ने विचार किया कि इलाहाबाद वापस जाकर पीएचडी करने की बजाय विलायत में ही कुछ महीने और रहकर पीएचडी कर ली जाए। इसलिए अब उनका खर्च पहले की तुलना में बढ़ गया था।

इधर तेजी को आर्थिक तंगी की वजह से अपना घर तक बेचना पड़ गया। तेजी से बच्चों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दैनंदिन खर्चों पर भी बड़े पैमाने पर कटौती कर दी और अपने सारे शौक व इच्छाओं को दरकिनार कर दिया। इधर विलायत में कवि को तो इस बारे में कुछ भी पता नहीं था। जब उनका भारत वापसी का समय आया तो उन्होंने तेजी को पत्र द्वारा अपने आने की खबर की और कहा कि वह बच्चों के साथ उन्हें रिसीव करने बंदरगाह पर आए तो उन्हें बहुत अच्छा लगेगा।

लेकिन तेजी ने जवाब में कहा कि आपको लेने के लिए मैं बंदरगाह तक नहीं आ सकती। कवि मुंबई उतरकर ट्रेन से इलाहाबाद पहुंचे। घर पहुंचकर पत्नी और बच्चों से मुलाकात की। पिता खिलौनों में अमित के लिए विलायत से एयरगन लाए थे तो छोटे बंटी के लिए पांच डिब्बों वाली चाभी भरने वाली ट्रेन लाए थे। दोनों बच्चों इन खिलौनों से बहुत खुश हो गए।

रात के खाने के बाद सब सोने चले गए। बंटी तो इस समय तक सो चुका था, लेकिन अमित को अभी तक नींद नहीं आई थी और उसके कान माता-पिता की बातों पर लगे हुए थे।

कवि बच्चन ने तेजी से कहा, 'तुमने पत्र में लिखा था कि तुम मुझे रिसीव करने बंदरगाह पर नहीं आ सकती, लेकिन फिर भी मुझे आशा थी कि तुम आओगी। जब मैं स्टीमर से उतरा तो मेरी आंखें तुम्हें ही ढूंढ़ रही थीं। तुम वहां पर क्यों नहीं आईं?'

जवाब देते समय तेजी रो पड़ीं और कहा 'तुम्हें पता है कि घर की आर्थिक स्थिति कैसी हो चुकी है? आज रात में हमने जो खाना खाया, वह बासा खाना था। घर में अनाज का एक दाना भी नहीं बचा है। तुम्हें रिसीव करने के लिए इलाहाबाद से मुंबई तक जाने का किराया कहां से लाती?' तेजी के ये शब्द सुनकर कवि स्तब्ध रह गए और विलायत से पीएचडी लाने की जो खुशी थी, वह एक ही पल में छिन्न-भिन्न सी हो गई, माथे पर शिकन उभर आई और उन्होंने अब कसमसाती हुई आवाज में कहा, घर की ऐसी हालत हो गई और तुमने मुझे अंधेरे में रखा। अगर तुमने मुझे पहले बता दिया होता तो मैं अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर सीधा यहां चला आता।

इधर दूसरी तरफ माता-पिता की ये बातें सुन-सुनकर अमित गुस्से की आग में जल रहा था लेकिन वह रो नहीं पा रहा था। उसके दिमाग में इस दुनिया के खिलाफ गुस्सा था कि पिता की क्या गलती है इसमें? किसलिए इतने अच्छे कवि और इतने अच्छे इंसान को भी ईश्वर ने इस दुखदायी अवस्था में रखा? और किसलिए निम्र स्तर के लोगों को भी ईश्वर अकूत दौलत से नवाजता है? मतलब यह सीधा द्वंद्व अमिताभ और ईश्वर के बीच में शुरू हो गया।

वैस अगर हम अपनी बात करें तो हमारे लिए तो 'एंग्री यंगमैनÓ का जन्म हिंदी सिनेमा के परदे पर 1973-74 फिल्म 'दीवार' से हुआ। हकीकत में 'एंग्री लिटल मैन' का जन्म तो 1954 की 5 जुलाई की मध्य रात्रि कवि हरवंशराय बच्चन के बैडरूम में ही हो चुका था। मां को रोते देख जब अमित ने अपनी मुठ्ठियां कसीं तब उनकी उम्र सिर्फ 12 वर्ष थी।

दूसरे दिन सुबह अमित के हाथ में पिता की दी हुई एयरगन (खिलौना) थी और दिमाग में विचार यह था कि, इससे पहले किसे मारूं? एक बच्चे के दिमाग में उपजा यह द्वंद्व किसी को मारने-पीटने का नहीं था, बल्कि यह वह समय था जब अमित के मन में बहुत सारा पैसा कमाने की इच्छा आकार ले रही थी। आंखें एक स्वप्र देख रही थीं और यह स्वप्र था - हाथों में लाखों रुपए होने और पिता के जेबें हीरे-मोतियों से छलका देने का।

अब बात करते हैं दूसरे प्रसंग की- यह घटना दिल्ली की है, इस बारे में तो स्वयं अमिताभ भी एक बार लिख चुके हैं। पंडित नेहरू के प्रयासों से बच्चन परिवार इलाहाबाद से दिल्ली आ गया था और अब इसके साथ ही घरखर्च भी बढ़ गया। इसलिए अब अमिताभ के कवि पिता को अपनी आय बढ़ाने के लिए कवि सम्मेलनों में भी जाना पड़ता।

पूरे दिन की नौकरी की थकान और कवि सम्मेलनों में देर रात का जागरण और इस पर भी 'दिल्ली की सर्दी'। शाम होते ही अपनी साइकिल से बच्चन घर से निकल जाते और पत्नी तेजी से कह जाते कि आने में देर हो जाएगी। मुन्ना और बंटी को खाना खिलाकर सुला देना।

बच्चन कवि का कवि सम्मेलनों में अक्सर देर हो जाने का मुख्य कारण उनकी लोकप्रियता थी और उनकी 'मधुशाला' काव्य कृति को सुनने के लिए ही लोगों की भीड़ जमा होती थी। अगर बच्चन अपनी यह कविता सम्मेलन में शुरुआत में ही सुना दिया करते तो देर रात तक भीड़ फिर रुकती ही क्यों। इसीलिए वे यह कविता सम्मेलन के अंत में सुनाया करते थे और उन्हें घर आने में अक्सर देर हो जाया करती थी।

दिल्ली की कड़कड़ाती सर्दी मे गर्म कोट पहने बच्चन ठिठुरते और दांत किटकिटाते हुए घर पहुंचते, तब तक छोटा बेटा बंटी सो जाया करता, लेकिन अमित का पिता से बहुत लगाव था, इसलिए उसकी आंखें पिता की राह देखती रहतीं। हालांकि मां के कड़क आदेश कि खाना समय पर खाना चाहिए, इस पर उनका बस नहीं चला करता, तो वे खाना तो खा लिया करते, लेकिन पिता के इंतजार में जागते जरूर रहते थे।

कवि सम्मेलनों से बच्चन अक्सर रात दो बजे तब घर आ पाते तो दरवाजा खुलवाने के लिए उंगलियों से बस धीरे-धीरे दरवाजे पर ठक-ठक किया करते। क्योंकि उन्हें लगता कि अगर दरवाजे की कुंडी बजाई तो दोनों बच्चे नींद से जाग जाएंगे। तेजी, पति का इंतजार करती रहती थीं तो हल्की सी आवाज में ही तुरंत दरवाजे तक पहुंच जाया करतीं। बच्चन अपना कोट उतारकर एक खूंटी पर टांग देते और जेब से कवि सम्मेलन में कमाए 30 या 40 रुपए पत्नी तेजी के हाथों में थमा दिया करते। इसके बाद एक लंबी सांस खींचते हुए कहते - 'ये पैसे कमबख्त बड़ी मुश्किल से आते हैं।'

लगभग 14 वर्षीय अमित ये सारी बातें-दृश्य चुपचाप लेटे-लेटे सुनता और निहारता रहता और पिता की इस जी-तोड़ मेहनत से उसे बहुत दुख होता। फिर अमित के दिमाग में यही बात आती कि काश मैं इतना पैसा कमाऊं कि पिता की जेंबे नोटों से भरी रहें और उन्हें इस तरह कठिन परिश्रम न करना पड़े। मतलब फिर उनका समाज और ईश्वर से द्वंद्व होता।

'ये पैसे कमबख्त बड़ी मुश्किल से आते हैं।'
आखिरकार समय के चक्र ने अपनी दिशा बदली.. अब अमित, अमित नहीं रहा, बल्कि पूरा देश उसे अमिताभ बच्चन के नाम से जानने लगा। पैसों की आवक नहीं, बल्कि बरसात होने लगी।

अब का दृश्य देखिएः
अमिताभ अपने बंगले (प्रतीक्षा) में पहुंचकर विदेशी कोट उतारते और उसे सौफे पर फेंकत हुए ब्रीफकेस से चालीस लाख रुपए के नोटों के बंडल निकालकर पत्नी के हाथ में देते। (यह रकम अब चार करोड़ तक पहुंच गई) और फिर प्रतीक्षा के ग्राउंड फ्लोर पर स्थित एकमात्र बेडरूम की दिशा में देखते हुए पिता का कहा गया यही वाक्य दोहराते - 'ये पैसे कमबख्त बड़ी मुश्किल से आते हैं!'

अतिम इस बेडरूम की इसलिए देखा करते क्योंकि इसी बेडरूम में कवि हरवंशराय बच्चन सोया करते थे। आज सोचता हूं कि अतिमाभ बच्चन नामक सुपर स्टार की कितनी प्रसिद्धी है... इतने सारे अवार्डस, इतनी लोकप्रियता और हिट फिल्मों की नामावली, क्या यही है बिग बी की प्रसिद्धी...?

लेकिन मैं उनकी इस प्रसिद्धि को नहीं, बल्कि उनकी जिद को ज्यादा मानता हूं, समाज और ईश्वर से हुए उनके उस द्वंद्व को ज्यादा मानता हूं जो बीस वर्ष पहले हुए था। क्योंकि बचपन में ईश्वर को दी हुई चुनौती को उन्होंने आखिरकार हकीकत में बदल डाला।

...और इसलिए वह शख्स सिर्फ अमिताभ ही हैं जिन्हें यह कहने का अधिकार है: 'पैसे आते नहीं, पैसे पैदा किए जाते हैं।'

उन पांच सालों में अमिताभ






मैंने सुना था कि कोलकाता के लोग फुटबॉल के पीछे पागल रहते हैं। इसके बाद जब मुझे यह जानकारी मिली कि अमिताभ बच्चन को पहली नौकरी कोलकाता में मिली थी, तब मेरे मन में यह सवाल उठा 'अमिताभ बच्चन इलाहाबाद से वाया दिल्ली होते हुए कोलकाता आए थे। गंगा किनारे रहने वाले इस छोरे को भी हुगली के किनारे बसे शहर का यह चस्का लगा कि नहीं?'


जवाब भी तुरंत मिल गया। अमिताभ ने जब भारत के इस सबसे बड़ी आबादी वाले शहर में पहली बार कदम रखा, उसी दिन वे टिकट लेकर फुटबॉल का मैच देखने निकल पड़े थे। दर्शक पागलों की तरह मोहन बागान टीम को चियर-अप कर रहे थे। इसी भीड़ में अमिताभ भी शामिल हो गए।


आज कोलकाता छूट गया है, वहां की नौकरियां, सखियां, नाटकों के सह-कलाकार... सबकुछ। लेकिन जो चीज आज भी उनसे दूर नहीं हो पाई, वह है फुटबाल के प्रति उनका अटूट लगाव।


अमिताभ बच्चन नामक सुपर स्टार के बारे में आज दुनिया भर के लोग थोड़ा-बहुत जानते ही हैं। लेकिन कोलकाता में बिताए उनके हसीन लम्हों के बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते। अमिताभ ने इस शहर में 5 वर्ष का समय बिताया। और उनकी जवानी के ये श्रेष्ठ 5 वर्ष थे। मुख्य बात यह थी कि यहां वे परिजनों से दूर रहते थे। बाबूजी के संस्कार और तेजीजी के सख्त अनुृशासन की शिक्षा दिल्ली में छूट चुकी थी। अब तो युवा अमित को आगे की जिंदगी का रास्ता खुद ही बनाना था।


'बर्ड एंड हिल्जर्स' कंपनी में अमिताभ की कोयला विभाग में नियुक्ति थी। प्रतिमाह 470 रुपए की तनख्वाह हाथ में आया करती थी। कोयला विभाग का काम और अमिताभ की डिग्री बिल्कुल भी मेल नहीं खाती थी। इसके अलावा जहां भी कोयले की खदानें थीं, उन्हें वहां ट्रेनिंग के लिए जाना पड़ता था। मुख्यत: आसनसोल, धनबाद, हजारीबाग जैसे स्थलों पर उनका अक्सर आना-जाना हुआ करता था। ऐसी ही एक ट्रेनिंग के दरमियान अमिताभ खान में फंस गए थे। अचानक खान की दीवार धंस गई थी और खान में पानी भरने लगा था। लेकिन मौत के कुछ क्षण पहले ही उन्हें सुरक्षा दल ने बचा लिया।


जिन्होंने अमिताभ की फिल्म 'काला पत्थर' देखी होगी, उन्हें इस फिल्म में दर्शाया गया यह दृश्य बहुत अच्छी तरह से याद भी होगा। दरअसल यह दृश्य अमिताभ के जीवन के एक प्रसंग पर ही आधारित था।


कोलकाता में अमिताभ सन् 1963 से 1968 तक रहे। इन पांच वर्षों में उन्होंने लगभग 20 मकान भी बदले। प्रतिमाह मिलने वाली तनख्वाह वे अपने शौक में ही उड़ा दिया करते थे। सिगरेट के अलावा शराब पीना भी उनकी आदत में शुमार था।


इन 5 वर्षों की नौकरी के दरमियान अमिताभ ने कभी भी तनख्वाह से एक रुपया भी घर नहीं भेजा। इसके उलट वे तो मां-बाबूजी से खर्चे के लिए पैसे ले लिया करते थे। इसके बाद भी अमिताभ आज देश के सबसे बड़े ब्रांड एम्बेसेडर हैं। मेरे मत के अनुसार अमिताभ की प्रकृति में मौजूद दो बातों ने उन्हें आज इतनी ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। एक तो उनका संगीत के प्रति लगाव और दूसरा अभिनय के प्रति अटूट प्रेम। खासतौर पर उत्तर भारत के लोकसंगीत की तरफ उनका झुकाव। उत्तर भारत के लोकसंगीत के प्रति झुकाव उन्हें बाबूजी से विरासत में मिला और अभिनय का शौक मां से।


किशोरावस्था में तेजी बच्चन ने कई नाटकों में जबर्दस्त अभिनय किया था। मां और बाबूजी के इन दोनों शौकों को अमिताभ ने किस तरह अपने साथ रखा, यह जानना रुचिकर है...।


नौकरी के बाद बचने वाले समय में अमिताभ ने नाटकों में भाग लेने का निश्चय किया। कोलकाता में इस समय एक 'ऐमेच्योर्स' नामक नाटक कंपनी थी। अमिताभ इस कंपनी से जुड़ गए। यहां पर अमिताभ की पहचान कमल भगत, विजयकृष्ण और डिक रोजर्स जैसे कलाकारों से हुई। प्रख्यात क्रिकेट कमन्टेटर किशोर भीमाणी भी इस नाटक कंपनी से जुड़े हुए थे। इसके अलाव यहां एक हैंडसम युवक भी था, जिसने अमिताभ को अभिनय के मामले में जबर्दस्त चुनौती दी। इस युवक का नाम था 'विक्टर बनर्जी'।


विक्टर बनर्जी अभिनय के मामले में इतने कुशल थे कि लगभग हरेक नाटकों में उन्हें श्रेष्ठ अभिनेता के खिताब से नवाजा गया और अमिताभ हमेशा उनसे पीछे रहे...।